जीवनी

चंदन भारती जी की जीवनी

श्री चंदन भारती जी की जीवनी

चंदन भारती जी की जीवनी

श्री श्री 1008 महंत श्री चंदन भारती जी महाराज 

महंत श्री चंदन भारती जी महाराज एक ऐसे महान संत और साधक थे, जिन्होंने अपने तप, भक्ति और सेवा के माध्यम से न केवल अपने मठ और अनुयायियों को प्रेरित किया, बल्कि समाज के लिए एक ऐसा आदर्श प्रस्तुत किया जो आज भी अनुकरणीय है। उनका जीवन त्याग, तपस्या और समाज सेवा का प्रत्यक्ष उदाहरण है। उनकी साधना और ईश्वर भक्ति ने उन्हें एक महान संत और आध्यात्मिक गुरु के रूप में स्थापित किया।  (चंदन भारती जी की जीवनी)

जन्म और परिवारिक पृष्ठभूमि

महंत श्री चंदन भारती जी महाराज का जन्म विक्रम संवत 2005 (16 दिसंबर 1948), मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की 2 द्वितीया  को गुरुवार के दिन राजस्थान के बाड़मेर जिले के गाँव गोलिया महेचान की पवित्र भूमि पर हुआ। उनका जन्म एक धार्मिक और संस्कारवान परिवार में हुआ, जहाँ उनके पिताश्री श्री हीर भारती जी गोस्वामी और माता श्री मती उगम देवी ने उन्हें धार्मिक प्रवृत्तियों से ओतप्रोत वातावरण प्रदान किया।
उनके माता-पिता अत्यंत धार्मिक और आध्यात्मिक प्रवृत्ति के थे। माता उगम देवी अपने पुत्र को धर्म के प्रति समर्पित देख अत्यंत संतुष्ट रहती थीं। उनकी परवरिश इस तरह हुई कि बचपन से ही वे पूजा-पाठ, सेवा और साधना की ओर आकर्षित हो गए। यह कहना गलत नहीं होगा कि उनके परिवार से मिली आध्यात्मिक प्रेरणा ने उनके जीवन को साधना के मार्ग पर आरंभ से ही अग्रसर किया।

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बचपन का आध्यात्मिक झुकाव

बाल्यकाल से ही चंदन भारती जी महाराज साधना और तपस्या की ओर आकर्षित थे। अन्य बच्चों की तरह खेलकूद में मन लगाने की बजाय उनका ध्यान पूजा, भक्ति और साधना में रहता था। वे मंदिरों में जाकर भगवान की मूर्तियों के समक्ष घंटों ध्यानमग्न रहते थे। उनकी दिनचर्या में नियमित रूप से ध्यान, पूजा और आध्यात्मिक ग्रंथों का पाठ शामिल था।

वे अपने माता-पिता का बहुत आदर करते थे और विशेष रूप से वे अपनी माँ की सेवा में तत्पर रहते थे। परिवार के सदस्य उनकी इस प्रवृत्ति को देखकर उन्हें आशीर्वाद देते और विश्वास रखते कि यह बालक एक दिन महान संत बनेगा।

सांसारिक बंधनों का त्याग

महज 10 वर्ष की आयु में, चंदन भारती जी महाराज ने सांसारिक मोह-माया को त्याग दिया और भगवान की खोज में घर से निकल गए। इतनी छोटी उम्र में इस तरह का निर्णय लेना उनके दृढ़ संकल्प और भक्ति के प्रति उनकी गहरी निष्ठा को दर्शाता है। यह वह समय था जब उनका पूरा ध्यान ईश्वर को पाने और अपनी आत्मा को ईश्वरीय सानिध्य में लाने पर केंद्रित हो गया था।

वे गाँव भूंका पहुँचे, जहाँ उन्होंने अपनी साधना का मार्ग चुना। उन्होंने यहाँ जमीन के अंदर एक गुफा का निर्माण किया और उसमें कठोर तपस्या आरंभ की। इस गुफा में उन्होंने कई वर्षों तक ध्यान और तप किया। उनकी साधना इतनी गहन थी कि आसपास के लोग उनकी तपस्या को देखकर श्रद्धा से भर उठते थे। (चंदन भारती जी की जीवनी)

महंत श्री गुरु वसन भारती जी महाराज से भेंट

चंदन भारती जी महाराज के आध्यात्मिक जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ तब आया जब उनकी भेंट एक महान तपस्वी संत महंत श्री वसन भारती जी महाराज से हुई। वसन भारती जी महाराज वरिया मठ के महंत थे और अपने समय के एक महान योगिराज सिद्ध तपस्वी माने जाते थे। गुरु महंत श्री वसन भारती जी महाराज ने उनकी भक्ति, तपस्या और साधना को देखकर उन्हें शिष्य रूप में स्वीकार किया। उन्होंने श्री चंदन भारती जी महाराज को गुरु दीक्षा प्रदान की और उन्हें आध्यात्मिक ज्ञान की गहराइयों से अवगत कराया।।

गुरुदेव महंत श्री वसन भारती जी महाराज के सानिध्य में रहते हुए चंदन भारती जी महाराज ने लगभग दस से बारह दिन तक उनकी शिक्षाओं का अनुसरण किया। इसके बाद, गुरु की अनुमति से वे पुनः भूंका लौट गए और वहाँ अपनी साधना को अनवरत जारी रखा। गुरु के साथ बिताए ये दिन उनके जीवन का महत्वपूर्ण अध्याय थे, जिसने उनके आध्यात्मिक जीवन की नींव को और भी सुदृढ़ किया।

 

महंत पद की प्राप्ति

श्री श्री 1008 महंत श्री वसन भारती जी महाराज ने जब जीवित समाधि लेने का निर्णय लिया, तो उन्होंने अपने प्रिय शिष्य श्री चंदन भारती जी महाराज को भूँका से वरिया मठ बुलाया। 4 दिसंबर 1977 (विक्रम संवत 2034, मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष की अष्टमी, रविवार) को गुरु महंत श्री वसन भारती जी महाराज ने मठ का सम्पूर्ण कार्यभार श्री चंदन भारती जी महाराज को सौंप दिया। गुरु ने उन्हें मठ का महंत नियुक्त करते हुए समाज और धर्म के प्रति उनकी जिम्मेदारियों को समझाया। इसके बाद गुरु महंत श्री वसन भारती जी महाराज ने जीवित समाधि ले ली।

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श्री श्री 1008 महंत श्री वसन भारती जी महाराज की समाधी 

यह दिन श्री चंदन भारती जी महाराज के जीवन में एक नई जिम्मेदारी और आध्यात्मिक यात्रा के आरंभ का प्रतीक बना। (चंदन भारती जी की जीवनी)

मठ के कार्यों का संचालन और धार्मिक उत्थान

महंत बनने के बाद, श्री चंदन भारती जी महाराज ने मठ के कार्यों को पूरी निष्ठा और समर्पण के साथ संभाला। उन्होंने मठ के जीर्णोद्धार का कार्य आरंभ किया और इसे एक धार्मिक और आध्यात्मिक केंद्र के रूप में विकसित किया।

मंदिर निर्माण

महंत श्री चंदन भारती जी महाराज ने मठ के परिसर में शिव मंदिर [श्री उज्जैनेश्वर् महादेव ] का निर्माण कराया। उन्होंने शिवलिंग की स्थापना की और पूरे विधि-विधान के साथ उसकी प्रतिष्ठा संपन्न करवाई। यह मंदिर आज भी श्रद्धालुओं के लिए एक प्रमुख आस्था का केंद्र है।

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श्री उज्जैनेश्वर् महादेव मंदिर का मुख्य द्वार 

धार्मिक अनुष्ठान

उन्होंने मठ में समय-समय पर बड़े धार्मिक अनुष्ठान और आयोजन किए। इन आयोजनों में हजारों श्रद्धालु सम्मिलित होते और आध्यात्मिक ऊर्जा का अनुभव करते। इन अनुष्ठानों के माध्यम से उन्होंने समाज में धर्म और आध्यात्मिकता का प्रचार-प्रसार किया।

समाज सेवा

महंत श्री चंदन भारती जी महाराज ने न केवल मठ के विकास पर ध्यान दिया, बल्कि समाज के लिए भी कई कल्याणकारी कार्य किए। उन्होंने जरूरतमंदों की सहायता की, भंडारों का आयोजन किया और धार्मिक शिक्षा के माध्यम से लोगों को जागरूक किया।

 

शिष्य परंपरा और उत्तराधिकार

महंत श्री चंदन भारती जी महाराज के तीन प्रमुख शिष्य थे:

1. श्री मांग भारती जी महाराज वे उनके सबसे बड़े शिष्य थे। वे अत्यंत योग्य और समर्पित थे, लेकिन गुरुजी से पहले ही उनका शिवलोक गमन हो गया।

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श्री मांग भारती जी महाराज

2. श्री कल्याण भारती जी महाराजवे दूसरे नंबर के शिष्य थे और गुरुजी के जीवन के अंतिम समय तक उनके साथ रहे।

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श्री कल्याण भारती जी महाराज

3. श्री नारायण भारती जी महाराज  – उन्होंने तीसरे शिष्य को वरिया भगजी में मंदिर निर्माण का कार्य सौंपा और वहाँ का कार्यभार उन्हें सुपुर्द किया।

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श्री नारायण भारती जी महाराज

महंत श्री चंदन भारती जी महाराज ने अपने शिष्यों को न केवल आध्यात्मिक शिक्षा दी, बल्कि उन्हें जिम्मेदारियों का सही प्रकार से निर्वहन करने का भी पाठ पढ़ाया।

अंतिम समय और महाप्रयाण

महंत श्री चंदन भारती जी महाराज ने अपने जीवन के अंतिम समय में मठ का कार्यभार अपने दूसरे शिष्य श्री कल्याण भारती जी महाराज  को सौंप दिया।

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श्री कल्याण भारती जी महाराज को आशीर्वाद एवं मठ का कार्यभार सौपना 

8 फरवरी 2008 (विक्रम संवत 2064, फाल्गुन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा, शुक्रवार) को सायं 5 बजे उन्होंने अपने नश्वर शरीर का त्याग कर शिवलोक गमन किया। एवं समाधी ली

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महंत श्री चंदन भारती जी महाराज की समाधी 

 

महंत श्री चंदन भारती जी महाराज की विरासत

महंत श्री चंदन भारती जी महाराज ने अपने त्याग, तपस्या और सेवा के माध्यम से समाज को एक नई दिशा दी। उनकी शिक्षाएँ, उनके द्वारा किया गये धार्मिक और सामाजिक कार्य, और उनका जीवन सदियों तक प्रेरणा देता रहेगा।
उनकी भक्ति, साधना और सेवा को आज भी उनके अनुयायी याद करते हैं और उनके दिखाए मार्ग पर चलने का प्रयास करते हैं। उनके द्वारा बनाए गए मंदिर और मठ आज भी आध्यात्मिक चेतना का केंद्र बने हुए हैं।

उनकी यह जीवन गाथा हमें सिखाती है कि सच्चा संत वही होता है, जो अपने व्यक्तिगत लाभ से परे जाकर समाज और धर्म के कल्याण के लिए अपना जीवन समर्पित कर देता है। महंत श्री चंदन भारती जी महाराज का जीवन हमें त्याग, भक्ति और सेवा का पाठ पढ़ाता रहेगा।    (चंदन भारती जी की जीवनी)

 लेखक :- महंत श्री कल्याण भारती जी मठ वरिया 

मैं वारी जाऊ मन रे lyrics

महन्त श्री चंदन भारती जी  

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